भगवान् ने न कोई सरहद बनाई न कोई देश
न उसने कोई जात पात बनाई न ही कोई भेष
फिर से लकीरें कब से खिंच गयीं इस धरती के पार
के हरदम लड़ने को रहता है इंसान हमेशा तैयार
तेरा देश मेरा देश, हम हैं ऊपर तुम तो नीचे
देशभक्ति के नाम पैर कितनी रेखाएं रक्त से सींचे
इस ब्रह्माण्ड में इक तुच्छ सा गोला है जिसे धरती है कहते
न जाने इस सौरमंडल में और कितने ऐसे जीवन रहते
खुद को जो कहते है सबसे समझदार प्राणी वो है इंसान
परन्तु उसकी जादातर हरकतें होती हैं जैसे कोई शैतान
कभी लोभ में कभी क्रोध में, कभी है वश वो काम
इतना सितम है क्यूकर जब लेते हैं सब इश्वर नाम
बेशक मत बनो तुम धार्मिक पर मस्तिष्क के पट खोलो
अगर अच्छा नहीं कह सकते, चुप रहो कुछ मत बोलो
इश्वर तो चले हो खोजने पर अपने भीतर तो झांको ज़रा
कहाँ है वो करुना दया, कौन पड़ा है भीतर मरा
ये सरहदें तो बस दिखावा है, सच्ची देशभक्ति तो है प्यार
परन्तु उसका भी गलत मतलब निकालते है आजकल यार
प्यार का अर्थ है सबके भीतर दर्शन करो बस इक जोत
नहीं है लेना इसका किसी और चीज़ से, बस इतना है बोत
मारना दुसरे इंसान को युद्ध में लेकर कृष्णा का बहाना
ये तो वैसे ही है जैसे अपना समझ कर लूट लो कोई खजाना
चंद सियासी शैतानों ने घुम्मा रखी है दुनिया सारी
अगर मोक्ष चाहते हो तो दूर फेंको ये बीमारी
खोजो सत्य अपने भीतर और कहीं नहीं मिलेगा भाई
जब होगा स्वयं से मिलन, तब अस्तित्व होगा स्थाई
तब तक सब तुम करते रहेंगे अपने स्वार्थ हेतु भ्रमित
उठा लो अपना क्रूज़ और चलते रहो चाहे हो श्रमित
जब भीतर होगा प्रकाश तभी दुनिया भी समझ पायोगे
फिर जिस पथ से तुम आये थे उसपे न लौट के जायोगे
सभी पथ हो जायेंगे बस उसी ईश का पवन पथ
लेकिन ये नहीं फूलों की सेज, ये तो है ज्वलंत अग्निपथ