गोबिंद तो हैं हरदम तत्पर, क्या वो नहीं बचायेंगे
ऐसा नहीं के आ नहीं सकते, फिर क्यों देर लगायेंगे
चाहें तो पल में नष्ट कर दें, फिर क्यों न सुदर्शन चलाएंगे
चाहते हैं वो जाग्रत करना, इसलिए तुम से करवाएंगे
चाहे जितने दुर्योधन हों या हों फिर लक्ष हों दुशासन
चाहे कोई व्यवस्था न हो, निकम्मा हो चाहे प्रशासन
फिर भी डरो नहीं सबला तुम, शक्ति वही बन जायेंगे
पीलो अभी विष का प्याला, फिर अमृत भी पिलायेंगे
रुको नहीं झुको नहीं तुम, न ही अपने प्राण त्यागो
डर की इस निद्रा को छोड़, सबल होके अब तुम जागो
यही है तुम्हारी परीक्षा मत बनो तुम खुद पे बोझ
तुम शक्ति से ओत प्रोत हो, उस शक्ति को खोज
जब तुम बन जयोगी सशक्त, गोविन्द फिर से आएंगे
इस बार बचाने नहीं, शक्ति रूपा को नमन कराएँगे
उठो द्रौपदी वस्त्र उठा लो, फिलहाल गोविन्द न आएंगे