आज कलम खामोश क्यूँ कुछ उदास है
क्यों इक अनकही बात की कोई आस है
आज कुछ यूंही रिश्तों का दौर आया याद
क्या था खूबसूरत समां न कोई फ़रियाद
आज भी रिश्ते तो शिद्दत से निभाते हैं
जो गुज़रे दौर के ज़माने याद आते हैं
वजह तो कुछ और है पर उसे छुपाते हैं
कुछ हैं रहस्य जो स्वयं नहीं बताते हैं
कुछ तो अंतर्मन में है अनंत गहरा
जिसपे हमने स्वयं लगाया है पहरा
रात की जब भी कालिमा छाती है
वही छवि फिर अक्स दिखलाती हैं
जाने अनजाने वक़्त फिर वहीँ है आता
जो कृष्णा को हो मंज़ूर उसे हो भाता
उस अनंत गहराईयों में उतर जायेंगे
तो इस सागर का सार भी पायेंगे
(*Image courtesy: planetminecraft website)