The Unexplained: Musings of the Mind

The Unexplained: Musings of the Mind

आज कलम  खामोश क्यूँ कुछ उदास है

क्यों इक अनकही बात की कोई आस है

आज कुछ यूंही रिश्तों का दौर आया याद

क्या था खूबसूरत समां न कोई फ़रियाद

आज भी रिश्ते तो शिद्दत से निभाते हैं

जो गुज़रे दौर के ज़माने याद आते हैं

वजह तो कुछ और है पर उसे छुपाते हैं

कुछ हैं रहस्य जो स्वयं नहीं बताते हैं

कुछ तो  अंतर्मन में है अनंत गहरा

जिसपे हमने स्वयं लगाया है पहरा

रात की जब भी कालिमा छाती है

वही छवि फिर अक्स दिखलाती हैं

जाने अनजाने वक़्त फिर वहीँ है आता

जो कृष्णा को हो मंज़ूर उसे हो भाता

उस अनंत गहराईयों में उतर जायेंगे

तो इस सागर का सार भी पायेंगे

(*Image courtesy: planetminecraft website)

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