ऐसी भी क्या चली हवा, देखो क्या इंसान हो गया
क्या मज़हब की वजह से, इतना वो शैतान हो गया
जिस मज़हब का असली मकसद था बस्ती बसाना
वो वीरानों की वजह और नफरत का पैगाम हो गया
नहीं रहे सब बच्चे अपने, कहाँ है वो ईमान खो गया
कंजक का अगर धर्म दूसरा, उसका कष्ट बेमान हो गया
हर धर्म तो है कहता, भगवान् अल्लाह का रूप है बच्चे
परन्तु अब काली के आगे, असीफा का मान खो गया
क्या ये धर्म का है दोष, या उन नेतायों और ठेकेदारों का
मज़हब का क्या दोष, दोष तो है उन संकीर्ण दीवारों का
जो बोई जाती हैं सिर्फ अपनी सत्ता के लिए इंसानों में
यही नहीं संभले हम तो क्या है फर्क हैवान शैतानो में
मत ले जाओ इक बच्ची की पीड़ा को बंटवारे की ओर
मत बचाओ जिन्होंने तोड़ी एक नन्ही जीवन की डोर
आज अगर बंट गए कल तुम्हारा भी हो सकता बच्चा
क्युकी जो है शैतान वो तुम्हारे लिए भी नहीं सच्चा
चढ़ने दो फांसी उनको नहीं तो कल पछ्तायोगे
फिर रोते रोते तुम उसी मंदिर मस्जिद में जायोगे
जिसके सामने करते हो ढोंग क्या वो फिर बचाएगा
इतना जब कुछ होने लगा हो, क्या मसीहा भी आयेगा
इससे अच्छा त्रिनेत्र से करके सृष्टि का संपूर्ण नाश
वो शक्ति भी कर सकती है इस जगत का संपूर्ण विनाश
ताकि फिर से जन्म नया हो, इंसान बन जाये आदि मानव
ताकि कुछ सदियाँ लग जाएँ उसको फिर बनने में दानव
सोचो और ऊपर उठो इस हिन्दू मुस्लिम बंटवारे से
क्या तुम्हे नहीं दिखते है नन्हे फ़रिश्ते प्यारे से
कर सकते हो तो करो कुछ मदद उस परिवार की
जिसको जरूरत है इस वक़्त तुम्हारे कुछ प्यार की
मत भगाओ उनको, उनकी ज़मीन से मत तोड़ो
पुल बनाओ दीवारें नहीं, हो सके तो सबको जोड़ो