ए गगन के पंछी यूं ज़मीन पे बैठ कर क्यूँ आस्मां देखता है
पंखों को खोल कर ऊंचे उडो ज़माना सिर्फ उड़ान देखते है
सागर की लहरों की तो फितरत ही है ऊंचा शोर मचाने की
मंजिल तो उसी को मिलती है जो नज़रों में तूफ़ान देखता है
यहाँ परिंदे तो अपनी मौज में रहते हैं सदा सदा के लिए
दूसरा कितना ऊंचा उठा, ये तो केवल इंसान देखता है
प्रेम से रहो, सबके संग चलो, और कुछ नहीं इस जहाँ में
वर्ना कु-दृष्टि से तो हमेशा ही दूसरों को शैतान देखता है
जितना भी जी लो, बन जाओ सिकंदर पर ये बात स्मरण रखो
आखिर इक दिन यहीं आयोगे, ये हमेशा शमशान देखता है
राख हो मिटटी हो पर उसके अन्दर इक अमर आत्मा भी हो
इसलिए डरो या हारो मत, हमेशा ही तुम्हे भगवान् देखता है
रहो हमेशा निष्कपट, मत करो किसी से धोखा या ठगी
कोई देखे न देखे हमेशा तुम्हारा अपना ईमान देखता है
मत करो बहाने, नहीं रोक सकती तुम्हे कोई भी रुकावट
भीतर झांको के वहीँ तुम्हे तुम्हारा सम्मान देखता है
कुछ कर गुजरो के दूसरो के लिए भी बनो तुम प्रेरणा
याद रहे ऐसे ही व्यक्ति को हमेशा ये अवाम देखता है