निभाते तो हैं गहराई से हम रिश्ते
लेकिन फिर भी नहीं हैं हम फ़रिश्ते
चोट तो लगती है होते भी हैं घायल
फिर भी ज़िन्दगी हम तेरे हैं कायल
जितना तुम गिरयोगे उठेंगे दोबारा
सबल, सशक्त, बिना कोई सहारा
चाहे तूने पल पल इम्तिहाँ लिया
पर बदले में तूने बहुत कुछ दिया
वक़्त का हर तंज हम लड़ी में पिरोते
चाहे चुपके से सही हम भी कभी रोते
इक योधा की तरह फिर से चलते
फिर पंख फैलाए अरमान मचलते
जब तक है सांस हम लड़ेंगे जरूर
अपने वजूद पे इतना तो है गरूर
ये तो कुछ पल हम पिघल जाते हैं
वरना पत्थर को भी मात दिलाते हैं
अग्नि पे जो हैं चलते और हराते
उसे अंगारों से क्योंकर हो डराते
चलो फिर से उठो करते हैं और प्रयास
आसमान चूमना है फिर से करो कयास