१३५५ में हुआ पकिस्तान के कसूर गाँव में इनका जन्म ऐसा
सब देखते ही रह गए, क्या नूर है, कौन है ये दिव्य आभा जैसा
ज्योतिष और पंडितों ने देख के राशिफल फ़ौरन दिया बता
ये वो है तो सब की आँखों का नूर बनेगा, सोये को देगा जगा
उन्होंने बोला इसका नाम “लाल” रखो, है ये अनमोल रतन
इसको ही सब याद करेंगे, जब भी होगा जग का घोर पतन
अन्य बच्चों की तरह जाते थे वो गौ माता को चराने रोज
परन्तु उनका अलग ही रूप था, अलग ही था उनका ओज
एक दिन वो गौ चराते हुए सो गए खा के मक्की और हरा साग
तब धूप से उनकी रक्षा करने प्रकट हुए स्वयं श्री शेष नाग
जब सदगुरु चेतन स्वामी उधर से गुज़रे उन्होंने ये सब देखा
तुरंत समझ गए ये कोई दिव्या बालक है, देख के मस्तक रेखा
उन्होंने चावल बनाये और तीन दाने उस बालक को किये अर्पण
क्यूंकि सच्चे संत की झलक दिख जाती है, ज्यूं शीशा या दर्पण
जब पूर्ण हुई शिक्षा तो वो बालक गए रहने सहारनपुर करते थे घोर तप
उनको भक्ति से प्रस्सन हुई गंगा माता जी, देख के उनका नित्य जप
सहारनपुर में होते हुए, बाबाजी का सूक्षम शरीर करता था गंगा स्नान
गंगा मैया को तो प्रस्सन होना ही था, देख कर ये भक्ति और ज्ञान
उन्होंने वरदान दिया हे लाल जाओ आज से बेशक यहाँ मत आना
मैं खुद ही बहके सहारनपुर आयूंगी मुझे वहीँ होगा आपके पीछे जाना
तब से गंगा से हरिद्वार से बहके इक नदी गयी सहारनपुर की ओर
उसको कहते हैं पौन धोई गंगा, जिसका दूर दूर तक नहीं है छोर
फिर वहां से हो गए पंजाब में बटाला के पास कलानौर के गाँव
उस जगह को भी पवन कर दिया, जहाँ पे रखे उन्होंने पाँव
उसके बाद वो हो गए बुज़ुर्ग, पर अपनी शक्ति से वो बन गए बाल
देख के उनका ये चमत्कार धिआन दास हो गए फ़िदा बेमिसाल
१४९५ में अपने तीन शिष्यों के साथ वो धिआन पुर में पधारे
उनकी महिमा बढ़ने लगी, श्रद्धालु पहुँचने लगे उनके द्वारे
गुरु मंत्र देते थे वो लोगों को करते थे सब दुःख उनके वो दूर
उनकी शरण में पहुच कर, बड़े बड़ों का होता अहंकार चूर
पूरे भारत में उन्होंने २२ गद्दी जी की किया स्थापना सब ओर
उनके पे जो श्रधा रखे उसपे चले न माया का कोई भी जोर
१६५५ में जब उनकी आयु थी ३०० वर्ष तब उन्होंने ली समाधी
उनका नाम लेना ही बहुत है, चाहे एक घड़ी चाहे आधी
चलो हम सब बाबा लाल जी को नवाते है सीस
उनका जैकारा लगते हैं, लेते हैं उनकी पवित्र आसीस
जय बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय